यूनिवर्सिटी ऑफ़ विर्जिनिया
नवाब मिर्ज़ा ख़ान
' दाग़ ' देहलवी
ग़ज़ल in -आँ
फिरे राह से वह यहाँ
आते-आते
अजल मेरी रही तू कहाँ
आते-आते
। । १ । ।
मुझे याद करने से
मुद्दआ था
निकल जाये दम हिचकियाँ
आते-आते
। । २ । ।
कलेजा मेरे मुँह को
आयेगा इक दिन
यूँ ही लब पे आह-ओ-फ़ुग़ाँ
आते-आते
। । ३ । ।
नतीजा न निकला, थके सब पयामी
वहाँ जाते-जाते, यहाँ
आते-आते
। । ४ । ।
नहीं खेल, ऐ " दाग़ ",
यारों से कह दो
कि आती है उर्दू ज़ुबाँ आते-आते
। । ५ । ।
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Keyed in 20 Aug 2002. Posted 20 Aug 2002.